
नमस्कार, मेरा नाम डॉक्टर रिया सेंगर है और मैं मेडिकल हेल्थ क्यर से गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट हूँ। आज हम एक बहुत ही बेसिक प्रक्रिया के बारे में बात करेंगे। कॉन्स्टिपेशन यानी कब्जी पेट साफ नहीं होता। ऐसे परेशानी से बहुत सारे लोग।गुज़रते है और मेरे पास ऐसे बहुत सारे पेशेंट्स आते है जिनको क्रोनिक कॉन्स्टिपेशन की प्रॉब्लम बनी रहती है और बहुत सारे लोग इसको अपचुन मानते हैं। तो इस बात को हम क्लियर कर देते हैं कि देखिए खाने का पछना जो है वो तो छोटी आंकड़ी में होता है और छोटी आंकड़ी से सब सारे पोषण के तत्व निकल जाते हैं। तो बचा हुआ पदार्थ बड़ी आंखणी पहुँचता है जहाँ पे 8090% पानी का अब्सॉर्पशन होता है। क्योंकि जब तक वो बड़ी आंखणी पहुँचता है तब तक ये पदार्थ अभी भी फ्लूइड स्टेट में ही होता है। ऑलमोस्ट पानी के जैसे दिखता है और 80-90 प्रतिशत जब पानी यहाँ पे अबसॉर्ब हो जाता है।
बड़ी आंखणी में तो मल्ल जो है सॉलिड होने लगता है। और ये बड़ी आंतड़ी जो है एक इन्वर्टेड क्यूँ शेप की आंतड़ी है और मल को एक छोर से दूसरे छोर तक आने में 72 घंटे तक लग सकते हैं। किसी किसी की आंतड़ी स्वाभाविक रूप से ही स्लो चलती है। उन लोगों के मल और ज्यादा सॉलिड बनता है और ज्यादा हार्ड हो जाता है क्योंकि ज्यादा समय तक बड़ी आंतड़ी के अंदर रहता है। उसमें पानी का अब्सॉर्पशन और ज्यादा होता है और इन लोगों को कई बार मुश्किल होती है रोज़ के रोज़ पेट साफ करने में। लेकिन अगर देखा जाए तो इवन इफ। कोई अगर हफ्ते में 3 दिन से ज्यादा बार अगर अपना पेट साफ कर पाता है तो ये कोई बड़ी बिमारी नहीं मानी जाती है। हाँ, हिंदुस्तान में हमारा ये मानना है कि भाई अगर हम रोज़ के रोज़ पेट साफ नहीं करते हैं तो ये एक खराब बात है। लेकिन मेडिकल इसको एक कोई बुरी बिमारी नहीं माना जाता है। 1 दिन छोड़ के 1 दिन भी अगर कोई पेट साफ़ अगर किसी का हो रहा है उसको भी हम नॉर्मल ही सो अब क्रोनिक कॉन्स्टिपेशन की अगर बात की जाए जैसे मैंने आपको बोला कि भाई ये आंत्रिक के स्लो मूवमेंट की वजह से हो सकता है और इसके लिए सबसे इम्पोर्टेन्ट चीज़ होती है एक नियम बनाना हर चीज़ का एक नियम बनाना। नियम किसकी हम बनाएंगे? एक होता है कि भाई। सब्जी की मात्रा हमारे खाने में अच्छी खासी होनी चाहिए क्योंकि फाइबर अच्छा होगा तो कॉन्स्टिपेशन होने के चान्सेस कम होते हैं।

पानी कम से कम हमको दो लीटर दिन का पीना चाहिए ताकि हमारा फ्लूइड का अब्सॉर्पशन भी अगर हो रहा है में फिर भी जो लेटरन होगी वो ज्यादा हार्ड नहीं होगी। थर्डली हमारा हैबिट एक फर्म होना चाहिए की भाई रोज़ सुबह सुबह उठ कर के हमें जाके शौच शौचालय जाना है मतलब उसके लिए वेइट् नहीं करना है की भाई जब हमको ज़ोर आएगा तभी हम जाएंगे, क्योंकि कई बार क्या होता है की जब ज़ोर आता है तो बचपन में स्पेशल ये देखा जाता है की लोग अपनी हैबिट बिगाड़ देते हैं। की सुबह जल्दी उठना है। स्कूल की बस आनी है तो अभी नहीं जाएंगे, फिर दोपहर को चले जाएंगे। फिर शाम को चले जाएंगे। तो ये जो बचपन की आदतें होती है ये बिगड़ती, बिगड़ती, बड़े होते होते और ज्यादा बिगड़ जाती है तो वापस रीलर्न करना होता है। इसको हम कहते हैं बेहेवियर थेरेपी फॉर कॉन्स्टिपेशन। तो एक किस्म से रीलर्न करना पड़ता है। इस पूरे हैबिट को एंड लास्ट्ली बहुत इम्पोर्टेन्ट चीज़ है की देखिये हम भी एक जानवर ही है और हमारे लिए चलना सबसे इम्पोर्टेन्ट फिजियोलॉजिकल एक्सर्साइज़ मानी जाती है तो मिनिमम तो मैं कहती हूँ पांच किलोमीटर का पूरे दिन में चलना होना चाहिए तो अगर एक अडल्ट आदमी एक औसतन रेट पे चलता है। तो 1 घंटे में तकरीबन वो पांच किलोमीटर कवर कर लेता है। जरूरी नहीं है की आपको सारा का सारा चलना है जो सुबह ही करना है या रात को ही करना है। आप दिन भर में इसको कवर कर सकते है, लेकिन ब्रिस्क वाकिंग होना है। ये ये ऐसा नहीं होना चाहिए की भाई घर में हम अंदर बहार करते करते पांच किलोमीटर कर रहे है। वो वाकिंग हम नहीं मानते है। ब्रिस्क वॉकिंग होना चाहिए। ऐट ए स्ट्रेच आपका चाहे आप दिन में दो बार इसको कट करके करे या एक ही बार इसको कंप्लीट कर दे। अब ये तो बात हो गयी क्रोनिक कॉन्स्टिपेशन की लेकिन कभी कभी कुछ बीमारियों के साथ भी कॉन्स्टिपेशन जुड़ा होता है और सबसे कामन इसमें होता है हाइपोथायरॉइडिज्म। यानी थायराइड नामक ग्रंथ के जब हार्मोन की कमी हो जाती है तो सबसे कामन इसका जो मैनिफेस्टेशन होता है वो होता है कॉन्स्टिपेशन। इसीलिए थायराइड प्रोफाइल करना बहुत जरूरी है क्योंकि ये इसिली ट्रीटेबल प्रॉब्लम है और काफी कामन है। हमारे देश में सो थायराइड का एक जात बिलकुल होना चाहिए और अगर उसकी कमी है तो उसकी टैबलेट पे शुरुआत हम कर सकते हैं। लास्ट्ली, मैं बात करूँगी अगर अक्यूटॉक्साइड कॉन्स्टिपेशन हो जाता है
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